16-Jun-2024
Nav Bharat Times
इन फायदों की अहम बातें
यह सभी फायदे कंपनी ले और शेयर मार्केट रेम्युलेटर SEBI के नियमों के मुताबिक है।
कंपनी के Board of Directors इसे तय करते है और शेयर होल्डर्स की मीटिंग में इसे इजाजत दे जाते है।
इसके हकदार वे सब शेयर होल्डर है जो Record Date पानी कट ऑफ डेट में रजिस्टर्ड शेयर होल्डर्स माने जाते हैं। इसे ऐसे समझे कि कंपनी की ओर से तय की गई किसी डेट को जो भी उस शेयर का मालिक होगा उसे ही इसका फायदा मिलेगा। मान ले किनी ने रेकॉर्ड डेट 10 अप्रैल तय की। अब इस डेट पर अगर शेयर होल्डर का नाम उस लिस्ट में है दो उसे इसका मिलेगा।
Record Date यानि कटऑफ डेट कंपनी तय करते है। इसकी सूचना Stock Exchange को एडवांस में भेजते है।
25,60,000 शेयर हो गए थे विप्रो के जिन्होंने 1980 में 10 शेयर खरीदे थे। इससे कंपनी ने 12 बार बोनस और 2 बार स्प्लिट ऐलान किए थे। यह विप्रो के शेयरहोल्डर्स को बोनस से मिलने वाला अब तक का सबसे बड़ा फायदा है।
Dividend
सरकारी कंपनियाँ अपने रेट पर नियमित डिविडेंड देती हैं, जैसे कोल इंडिया, BPCL।
Split
इसके जरिए कंपनिया अपने एक शेर को एक से बाँट देती है।
Bonus
Rights Issue
Buyback
Merger-Demerger
Merger
Demerger
■ उदाहरण के तौर पर, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अपना डिमर्जर करके 'जिन' नाम से एक नई कंपनी बनाई और उसे शेयर बाजार में लिस्ट भी किया।
09-July-2023
Nav Bharat Times
27-Nov-2022
Nav Bharat Times
Publication: Nav Bharat Times
Date: 27-November-2022
शेयर बाजार : ऐ भाई जरा देख के चलो
क्या आप शेयरों में निवेश करते है ? कभी आपको लगता है कि आपके ब्रोकर ने शेयर खरीदने - बेचने के आपके निर्देशों का सही वक्त पर पालन किया है या नहीं। क्या आपको इस जोखिम भरी मार्केट में निवेश करने से जुड़े सारे अधिकारों और सुविधाओं की जानकारी है ? क्या आपको मालूम है कि यह मार्केट किस तरीके से काम करता है और अगर आपको कोई शिकायत है तो कब किसके पास जा सकते हैं ? इस बारे में पूरी जानकारी दे रहे हैं
सीए अश्वनी गोयल
कैसे काम करता है शेयर बाजार
शेयर बाजार शेयर बाजार में हम शेयरों को खरीद - फरोख्त कर सकते हैं। इसके अलावा , डिवेंचर , करेंसी , कमोडिटीज आदि का लेन - देन भी होता है। इस समय देश में 3 प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज काम कर रहे हैं : नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE), बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE), मेट्रोपोलिटन एक्सचेंज (MSE) ।
जब हम शेयर खरीदते हैं , तो उन्हें डिजिटल रूप में स्टोर करने का काम 2 संस्थाएं करती हैं : NSDL ( नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड ) और CDSL ( सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड ) ।ये दोनों संस्थाएं अपने बिजनेस पार्टनर्स की मदद से इसे करती हैं। इन संस्थाओं को DP ( डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट ) कहा जाता है।
शेयर खरीदने और बेचने का सेटलमेंट
इस प्रक्रिया के 2 पहलू हैं : शेयरों की डिलिवरी और पैसे का भुगतान। ये काम क्लियरिंग हाउस और बैंक्स के जिम्मे होता है। यह प्रक्रिया 2 दिनों में खत्म होती है , जिसे हम T+2 कहते हैं। यहाँ T का मतलब है ट्रेड डे यानी वह दिन जब आपने शेयर खरीदा या बेचा। इस दिन को छोड़कर 2 और कामकाजी दिन लग जाते हैं। मिसाल के तौर पर सोमवार को अगर शेयर की खरीद - फरोख्त हुई है तो इसका सेटलमेंट बुधवार तक हो जाएगा। वहीं , शुक्रवार की ट्रेडिंग मंगलवार को सेटल होगी। शनिवार और रविवार को शेयर बाजार में काम नहीं होता। अब SEBI के निर्देशों पर सेटलमेंट डे एक दिन कम करके T+1 कर दिया गया है। उम्मीद है कि सभी शेयरों का लेन - देन 2023 की पहली तिमाही तक T+1 लागू हो जाएगा। जब यह पूरी तरह से लागू होगा तो यह दुनिया का सबसे तेज सेटलमेंट मैकेनिज्म माना जाएगा।
नोट : जब आप शेयर का भुगतान अपने डी - मैट अकाउंट में लेते हैं तब पावर ऑफ अटॉर्नी (PoA) देना लाजिमी नहीं है। ज्यादातर ब्रोकर अपने ट्रेडिंग फॉर्म के अंदर ही PoA के पेपर लगा देते हैं जो अनजाने में साइन हो जाते हैं। डिलिवरी स्लिप के बदले में Speed-e की सुविधा ली जा सकती है , जो पूरी तरह फ्री है।
शेयर निवेशकों के ये - ये हैं अधिकार और सुविधाएं
ब्रोकरेज: इसका जिस अकाउंट को खोलते वक्त फॉर्म में लिखित रूप से किया जाता है।और इसके नाम में ही दिया जाता है। इसमें बाद में कमी - बढ़ी आपसी सहमति से सकती है। ब्रोकरेज कभी भी शेयर वैल्यू पर 2.5% से ज्यादा ब्रोकरेज नहीं ले सकता। कुछ ब्रोकर 0%( ज़ीरो ) ब्रोकरेज पर भी काम कर रहे हैं।
STT: किस प्रकार के ट्रेड पर यह शुल्क लगता है। स्टॉक एक्सचेंज में यह शुल्क इक्विटी , म्यूचुअल (Future) पर 0.1% और ऑप्शन (Option) पर 0.05% होता है।
Stamp Duty: यह शुल्क हर डिलिवरी पर 10 पैसे प्रति शेयर और 2 पैसे प्रति डेरिवेटिव ट्रेड पर।
Exchange Transaction Charges: डिलिवरी सेगमेंट पर इसकी दर 3.5 पैसे प्रति शेयर और फ्यूचर पर 2 पैसे प्रति डेरिवेटिव।
SEBI Fees: इसकी दर 10 पैसे प्रति लाख।
GST: इसकी दर 18 प्रतिशत होती है और यह ब्रोकरेज व अन्य चार्ज पर ही लगती है।
नोट : इनके अलावा दूसरे कोई भी चार्ज नहीं लगता।
मान लें कि आपने 10,000 रुपये के शेयर खरीदे हैं तो आप पर कितने चार्ज लगेंगे, इसे समझें।
Brokerage: अगर आधी फीसदी तय हुई हो तो रुपया 50
STT: 10 रुपये
Stamp Duty: 1 रुपये
Exchange Transaction Charges: 35 रुपये
SEBI Fees: 1.5 पैसे
GST: 18% (50 + 35 पैसे ) = 9.06 रुपये
कुल चार्ज : 71.91 रुपये
शेयर खरीदने या बेचने का जो निर्देश हम अपने ब्रोकर को देते हैं, उसे जांचने का तरीका ब्रोकर की ओर से कस्टमर्स को दिया जाता है , जो अगले 10 दिनों तक उपलब्ध रहता है। कॉन्ट्रैक्ट नोट पर दिए गए नंबर से स्टॉक एक्सचेंज की ट्रेड कन्फर्मेशन विंडो पर जाकर ट्रेडिंग डे अगले 5 दिनों तक जांच सकते हैं।
कहां करें शिकायत
शेयर बाजार से जुड़ी हुई हर तरह की शिकायत SEBI के पास की जा सकती है। बाकी एजेंसियों पर शिकायत तभी की जा सकती है जब उनके साथ आपकी डीलिंग हुई है।
SEBI
वेबसाइट: scores.gov.in, investor.sebi.gov.in
फोन : 1800-266-7575
NSE
वेबसाइट: nseindia.com
फोन: 022-2659-8100 / 2659-8114
BSE
वेबसाइट: bseindia.com, ईमेलः is@bseindia.co.in
फोन: 022-2272-1233 /2272-1234
MSE
वेबसाइटःmsei.co.in, फोन: 022-6112-9000
NSDL
वेबसाइटः https://nsdl.co.in/ फोन: 1800-1020-990 / 1800-224-430
CDSL
वेबसाइटः cdslindia.com फोन: 1800-22-5533
न हो सुनवाई तो ये भी ऑप्शन
इंवेस्टमेंट से पहले यह ध्यान रखें
लेखक: NAM Securities Ltd. के फाउंडर-डायरेक्टर
15-May-2022
Nav Bharat Times
PUBLISHER: NAV BHARAT TIMES
Date: 15 May, 2022
किसने दी शेर बाजा को पटखनी ?
शेयर बाजार इस समय धराशायी है और निवेशकों के पसीने छूट रहे हैं। हर दिन बाजार टूट रहा है और नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। ऐसे में लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि उस समय जबकि देश में कोरोना का कहर था तो बाजार उछल रहा था जबकि अब कोरोना की लहर ठहर गई है , बाजार है कि फिसल रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इसके पीछे इंटरनैशनल सटोरियों का हाथ है जो लगातार बिकवाली कर रहे हैं। इन्हें हिडन प्लेयर भी कहा जाता है। ये छिपकर खेलते हैं और मोटा मुनाफा कमाकर छूमंतर हो जाते हैं। ऐसे ही हिडन प्लेयर्स के बारे में बता रहे हैं मधुरेन्द्र सिन्हा।
शेयर बाजार को पटाखनी देने का काम अक्सर वे लोग करते हैं जिन्हें सटोरिए या ट्रेनीज कहा जाता है। ये लोग चाहे जितने भी नाम दे लें , इनका मकसद एक ही होता है - जल्दी से जल्दी ढेर सारे पैसे कमाना , मालामाल हो जाना और फिर गायब हो जाना। इन लोगों के लिए नैतिकता और मोरैलिटी जैसी कोई चीज़ नहीं होती। ऐसे खिलाड़ी दुनिया भर में मौजूद हैं।कई बार शेयर बाजारों में तेजी का तूफान लाते हैं या फिर मंदी का दौर. ये लोग अपने तरीके से बाजार की चाल तक को प्रभावित करते हैं जिसे मैनिपुलेशन कहा जाता है। हाल में अपने शेयर बाजार में भी कुछ इस तरह से देखने को मिला है। इन दिनों से सेंसेक्स लगभग अपने पिछले साल के स्तर पर आ गया है। 14 मई 2021 को 45732.55 पर बंद हुआ था। वहीं इस साल 13 मई यानी शुक्रवार को सेंसेक्स 52,793.62 पर बंद हुआ।
दो लॉबी करती हैं खेल
शेयर मार्केट में दो तरह की लॉबी होती हैं। पहली बुल्स , जिसे तेज़ीये भी कहा जाता है और दूसरी भालू , जिसे मंदीये भी कहा जाता है। नाम के अनुरूप ही ये काम करती हैं। बाजार में तेजी लाकर अपना मुनाफा काटते हैं और फिर छू मंतर हो जाते हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि बियर भी शेयरों को गिराकर बाद में इससे ही मुनाफा कमा लेते हैं। इसका तरीका साधा सादा है कि किस कंपनी के शेयरों को मिलकर हैमरेिंग की जाती है और वह गिरता जाता है। जब यह काफी गिर चुका होता है तो फिर इसमें ये कारोबार करते हैं। जिससे और भी लोग उस कंपनी के शेयरों को खरीदने लगते हैं। जब शेयर का भाव बढ़ जाता है तो कैंपर उन बेचकर निकल जाते हैं।पंप ऐंड डंप शेयर बाजारों के सटोरिये इस सिद्धांत पर खास - खस शेयरों के दाम बढ़ाते हैं। पहले वे उन शेयरों में पैसा लगाते हैं जिनके बारे में उनके पास पूरी सूचना होती है या फिर उसके प्रमोटर उनसे मिले हुए होते हैं। ये सभी या फिर कुछ और खिलाड़ी मिलकर उस शेयर की जबर्दस्त खरीदारी करते हैं और फिर उसकी कीमतें बढ़ाते जाते हैं। जब उनका टार्गेट पूरा होने लगता है तो एक - एक कर अपने शेयर बेच देते हैं। इससे इस कंपनी के शेयर धराशायी हो जाते हैं और भोले - भाले निवेशकों के पैसे डुब जाते हैं। अमेरिका में यह काफी प्रचलित है और इसमें काफी बड़ी तादाद में लोग ठगे भी जाते हैं।सोशल मीडिया के फैल जाने से अब निवेशकों तक पहुँचना आसान हो गया है।
पम्प एंड डम्प का एक बड़ा मामला रात अमेरिका में हुआ जब विडिये गेम रिटेलर कंपनी गेमस्टॉप के शेयर तेजी से बहने लगे। इसके पीछे एक सटोरिये को जिस का हाथ था जिसने सेशल मीडिया रेडइट के जरिए इसे खूब पब्लिसिटी दी कोच जिल और उसके ग्रुप के लोग लाखों डॉलर कमIकर शेयर बाजार से फौरन निकल गए। यह थे कि एलन मस्क तक ने इसमें पैसे निवेश कर दिए थे। पम्प ऐंड डंप की की उस घटना ने अमेरिका में तहलका मचाया और सरकारी तंत्र को भी इस पढ़ी। जिल पर निवेशकों के पैसे का आरोप अदालत में लगा। विदेश सटोरिये अभी भी सक्रिय है।
कई धनी कारोबारी शामिल
इनसाइडर ट्रेडिंग
इसमें शेयर इन्वेस्टर और प्रमोटर या कंपनी का कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति आपस में मिल जाते हैं इंसाइडर ट्रेडिंग करने वाला या तो इन्वेस्टर होता है या फिर शेयर बाजार का कोई खिलाड़ी वह कंपनी की आंतरिक गोपनीय सूचनाएं जैसे कंपनी की ग्रोथ की क्या बिजनेस प्लानिंग है , कंपनी क्या करने जा रही है , उसकी आर्थिक ताकत कितनी है , उसके पास धन जुटाने के कितने साधन हैं , क्या यह किसी बड़ी कंपनी से कवर करने जा रही है वगैरह वगैरह कंपनी के पास प्रमोटर या किसी डायरेक्टर वगैरह से पा लेता है और फिर सिस्टमेटिक तरीके से उस शेयर को खरीदने लगाता है। एक योजनाबद्ध तरीके से किसी शेयर को खरीदने पर किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं जाता है प्रमोटर और ब्रोकर का यह खेल एक सीमा तक चलता है जब तक उस कंपनी के शेयर एक खास स्टार तक नहीं पहुँच जाते। उसके बाद यह ट्रेडर शेयर बेचना शुरू कर देते हैं। 2018 में हैदये और डेन केबल नेटवर्क्स का मामला सामने आया जिसमें उनके शेयर बाजार में भारी गिरावट के बावजूद तेजी से चढ़े। थोड़े दिनों के बाद जब रिलायंस ने उनके अधिग्रहण की घोषणा की तो बात साफ हो गई कि इसमें इंसाइडर ट्रेडिंग हुई है। इसी तरह 2013 में इंफोसिस के शेयर बाजार में भारी गिरावट के बावजूद और उसके शेयर सीमा से ज्यादा बढ़ गए। इसी तरह फार्मा के शेयर सिर्फ चार दिनों में 34 फीसदी बढ़ गए थे। इसी तरह 2015 में सेटरी टेक्सटाइल का मामला सामने आया जिसमें कैमेडन इंडस्ट्री ने एक सौदे से 214 करोड़ रुपए कमा लिए थे।
भारत में नहीं है सख्त कानून
इनसाइडर ट्रेडिंग अमेरिका और यूरोप में बहुत बड़ा है और इसमें कड़ी कार्रवाई की जाती है। यहीं अगर भारत की बात करें तो यहां कानून और उसके अलावा कानूनी प्रक्रिया बहुत है लेकिन यह लंबी भी है। SEBI इसके खिलाफ अक्सर कदम उठाती है और ट्रेडर्स को बैन करने तथा उन पर जुर्माना लगाने का भी काम करती है। इस तरह से कई और उनकी फर्म कानून के पंजे में आ चुकी है। कइयों पर तो शेयर बाजार में भाग लेने पर भी रोक लगती रहती है लेकिन इसके बावजूद कई खेल भी जाते हैं। इस तरह के कई आरोप कई कंपनियों पर लगे हैं। SEBI ने कई मामलों में जांच भी की है लेकिन कोई बड़ा एक्शन नहीं हुआ।
सोशल मीडिया
अब सट्टेबाजी यह कमोडिटीज में हो या स्टॉक्स में , ज्यादातर फ्यूचर पंनामी फायदे के कारोबार में सीमित हो गई है। इसमें सट्टा खेलने वाले प्रमोटरों से मिलकर या कई बार बिना मिले फ्यूचर में शेयरों की कीमतें बढ़ा देते हैं। इसके लिए ये मीडिया पब्लिसिटी का सहारा लेते हैं , सही समय देखकर मुनाफा बाँट लेते हैं। हाल में देश में कच्चे तेलों की कीमतें बढ़ने का एक बड़ा कारण भी यही था , सेटरॉय ने सरसों के दाने पर खूब सट्टा लगा के उसके भाव ऊचाइयों पर पहुँचा दिए , जिससे रेडो प्रोडक्ट की कीमतें बेहद ऊँची हो गईं। इन दिनों सोशल मीडिया भी इसका एक रोल बना हुआ है और कई यूट्यूब चैनल वगैरह भी किसी खास शेयर को प्रमोट करते नजर आते हैं। ऐसे में शेयर खरीदते समय इन बातों का ध्यान रखें :
ऑनलाइन से बढ़ी पारदर्शिता
ऑनलाइन ट्रेडिंग ने शेयर बाजार की पारदर्शिता काफी बढ़ा दी है। अब हर दिन बिके और खरीदे गए शेयरों का हिसाब - किताब रखा जाता है। लेकिन खेलने वाले फिर भी सफाई से खेल जाते हैं। फिर भी आज के कई बड़े निवेशकों पर उंगली उठती है कि अपने समय में उन लोगों ने इन ट्रेडिंग जमकर की और अरबपति बन गए। अगर आप उनकी जीवनी ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि उनकी दौलत में बेहिसाब इजाफा 80 और 90 के दशक में शेयर बाजार में पारदर्शिता नहीं थी और बदला जैसे टूल इस्तेमाल होते थे। इसके जरिए वे बड़े से बड़े शेयरों को खरीदकर लंबे समय तक पास रखे रहते थे। और जब से बढ़ते तो ऊंची कीमतों पर बेच देते। लेकिन आज ऑनलाइन के जमाने में यह संभव नहीं है।
क्रिप्टो करंसी का भी असर
शेयर बाजार में गिरावट के कारण कई हैं। इन दिनों फॉरेन इंस्टिट्यूशनल इन्वेस्टर लगातार इंडिया की मार्केट में हजारों करोड़ के शेयर बेच रहे हैं। यही क्रिप्टो करंसी की मार्केट धराशायी है। क्रिप्टो करंसी के इन्वेस्टर मार्केट में भी पैसा लगाते हैं। इनकी वेल्थ काफी कम हो गई है , जिसका असर टोटल इन्वेस्टमेंट और लिक्विडिटी पर पड़ा है। शेयर बाजार गिरने पर रिटेल इन्वेस्टर इनसाइडर ट्रेडिंग के ऊपर इल्जाम लगाते हैं जबकि गलती उनकी अपनी होती है। - अश्विनी गोयल फाउंडर , नाम सिक्योरिटीज लिमिटेड
मुनाफे में सबका हिस्सा इनसाइडर ट्रेडिंग में सटोरिए किसी कंपनी के प्रमोटर या टॉप मैनेजमेंट से खास तरह की सूचना लेकर उसके शेयर खरीदते हैं। जब रिजल्ट आता है तो शेयर उछल जाते हैं , मुनाफे में सबका हिस्सा हो जाता है। समय - समय पर कंपनियां , फर्मों और लोगों पर कार्रवाई हुई है। प्रणव हल्दिया एमडी , प्राइम डेटाबेस
SEBI हो जाती है अलर्ट
अब SEBI का सर्टिफिकेट मैनेजिंग बहुत ज्यादा है। जब भी किसी कंपनी के शेयर में खरीदारी होती है तो SEBI तुरंत अलर्ट हो जाती है। हो सकता है कि कोई एक्शन भी हो। सोशल मीडिया पर काफी कुछ आता रहता है जिससे ग्राहकों को जानकारी मिलती रहती है। संजिव सिन्हा संस्थापक ,
खेलने वाले खेल जाते हैं अब चीजें काफी बदल गई हैं , पहले जैसी बात नहीं रही। अब लोगों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई होती है। SEBI की वेबसाइट पर ऐसे लोगों के नाम देखे जा सकते हैं , लेकिन इस खेल में लालच से खेलने वाले खेल जाते हैं। संजय , शेयर बाजार विश्लेषक
27-Mar-2022
Nav Bharat Times
PUBLICATION: NAV BHARAT TIMES
Date: 27 March, 2022
31 से पहले निपटा दें ये काम
फाइनेंशियल ईयर 2021-22 सिर्फ 4 दिन में खत्म हो रहा है। अगर अब तक किसी दूसरे काम में उलझे रहे हैं और पर्सनल फाइनेंस के लिए जरूरी चीजों पर ध्यान नहीं दे पाए तो हम आपको इन कामों के बारे में विस्तार से बताते हैं ताकि अपने पैसे बचाने का कोई मौका हाथ से ना जाए :
मार्च का महीना फाइनेंशियल का आखिरी महीना होता है , अगर इनकम टैक्स या इंवेस्टमेंट से जुड़ा आपका कोई काम बाकी रह गया है तो जल्द से जल्द निपटा दें। इसके अलावा अगर आपने अगले साल के लिए टैक्स सेविंग की प्लानिंग की है तो भी कुछ जरूरी काम करने होंगे , इसके लिए भी यही सही वक्त है। यहां हम बता रहे हैं कि आप कौन से काम जल्द से जल्द निपटा लें।
पेंडिंग ITR भर दें
अगर आपने पिछले फाइनेंशियल ईयर 2020-21 की इनकम टैक्स रिटर्न फाइल नहीं कर पाई तो आपके पास आखिरी मौका बचा है , इसे 31 मार्च 2022 तक जरूर जमा करवा दें , लेकिन इसके साथ लेट फीस भी देनी होगी। अगर रिवाइज्ड ITR यानी इनकम टैक्स रिटर्न फाइल कर रहे हैं तो ध्यान रखें कि कोरोना की वजह से सरकार ने 2020-21 के लिए अपडेटेड ITR भरने की आखिरी तारीख 31 मार्च 2022 तय की थी। अगर अब भी रिवाइज्ड ITR भरने से चूक गए हैं तो उस साल की इनकम टैक्स भरने का अब कोई मौका नहीं मिलेगा।
एडवांस टैक्स भर दें
एडवांस टैक्स को सालभर में हर तिमाही में 4 किस्तों में 15%, 30% और 25% अदा किया जाना चाहिए। अगर आपने 15 मार्च तक टैक्स नहीं जमा कराया तो 31 मार्च से पहले जमा कर दें , ऐसा ना करने पर बकाया रकम पर ज्यादा ब्याज भरना होगा। वैसे तो ये प्रोफेशनल्स के लिए है , पर आपको सैलरी मिलती हो और वो TDS कटने के बाद मिलती हो , फिर भी एडवांस टैक्स भरना होगा। अगर किराया , ब्याज , डिविडेंड या कैपिटल गेंस आदि भी आय होती है तो इन पर एडवांस टैक्स भरना होगा। सेल्फ एंप्लॉयड लोगों को सालभर की कुल आय का अनुमान लगाकर हर तिमाही में टैक्स देना होता है। अगर इस आय पर कुल टैक्स 10,000 रुपये कम बने तो यह टैक्स जमा कराने की जरूरत नहीं होती।
इनकम टैक्स बचा लेंअगर आपकी सालाना आय 5 लाख रुपये से ऊपर है और अब तक आपने टैक्स प्लानिंग पूरी नहीं की है या धारा 80 सी के तहत 1.50 लाख की डिडक्शन नहीं ली है या कोई दूसरा टैक्स फायदा नहीं लिया है तो जल्दी करें। अगर पुराना टैक्स सिस्टम चुना है तो आपको यह जरूर करना चाहिए , पुरानी टैक्स प्रणाली के मुताबिक आप इनकम टैक्स में फायदा पा सकते हैं। इस वक्त भी PPF, लाइफ इंश्योरेंस , ELSS, NSC, टैक्स सेविंग , बैंक डिपॉजिट आदि में से कोई भी विकल्प चुन सकते हैं। अगर इनकम टैक्स की धारा 80 सी के तहत मिलने वाली डिडक्शन पूरी हो गई है तो हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी रखकर भी कुछ टैक्स बचा सकते हैं। टैक्स फ्री निवेश का भी मौका है क्योंकि 31 मार्च 2022 के बाद निवेश करेंगे तो वह पहले साल यानी 2022-23 फाइनेंशियल ईयर के लिए माना जाएगा , ऐसे में राहत भी इस साल नहीं , अगले साल ही मिलेगी। सेक्शन 80 सी के तहत 1.50 लाख रुपये तक के निवेश पर टैक्स सेविंग कर सकते ह रकम ग्रॉस टोटल इनकम में से घट जाती है। इसी तरह 80 सीसीडी के तहत टैक्स बचाने के लिए NPS में 50,000 रुपये जमा करा सकते हैं।
PAN-AADHAAR लिंक करें
आधार कार्ड को पैन नंबर से जोड़ने की आखिरी तारीख 31 मार्च की है। सरकार ने पहले यह तारीख 30 सितंबर 2021 तक तय की थी , लेकिन इसे बढ़ाकर 31 मार्च 2022 तक कर दिया गया। यह समझाना होगा कि इन दोनों दस्तावेज़ों को एक - दूसरे से लिंक करना बेहद जरूरी है। अगर इन्हें लिंक नहीं कराया तो आधार कार्ड अमान्य हो सकता है। ऐसे में प्रोसेसिंग पर 1000 रुपये तक का फाइन भी लग सकता है। पैन कार्ड न चलने पर कई काम ठप हो सकते हैं। मान लें , आपको शेयर बाजार में निवेश करना है , म्यूचुअल फंड में या दूसरी किसी जगह पर निवेश करना हो , तो आप नहीं कर पाएंगे। इसलिए इस काम में अब और देरी न करें , अब भी यह काम नहीं किया तो फाइन देना पड़ सकता है।
PPF, NPS, SSY
अगर आपने PPF, NPS, SSY योजनाओं के अकाउंट खोले हैं ताकि उनमें निवेश कर सकें तो अकाउंट में इस साल भी न्यूनतम पैसा जरूर रखें। ऐसा न करने पर अकाउंट बंद हो जाएगा , दोबारा सक्रिय करने पर वक्त भी जाएगा और फाइन भी लगेगा। इसलिए वक्त रहते इसमें पैसा जमा कर दें। PPF के लिए न्यूनतम योगदान 500 रुपये है , NPS के लिए 1000 रुपये और सुकन्या समृद्धि योजना के अकाउंट को सक्रिय रखने के लिए हर साल 250 रुपये से कम जमा करने होते हैं। PPF अकाउंट में न्यूनतम राशि न होने पर हर साल 50 रुपये की पेनल्टी लगती है।
KYC की आखिरी तारीख 31 मार्च रिजर्व बैंक ने KYC पूरी कराने की आखिरी तारीख भी 31 दिसंबर 2021 से बढ़ाकर 31 मार्च 2022 तक कर दी थी। रिजर्व बैंक ने सभी फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन्स को इस फाइनेंशियल ईयर में KYC पूरी न होने पर कोई कार्रवाई ना करने को कहा है। इसका मतलब अगले साल कार्रवाई हो सकती है। इसलिए कंज्यूमर्स को KYC के लिए अपना पैन कार्ड , पता , आधार या दूसरे डॉक्यूमेंट्स 31 मार्च 2022 तक अपडेट कराने होंगे , साथ ही अपनी ताजा तस्वीर और अन्य जानकारी देनी होगी।
Mutual Fund को आधार से लिंक करें म्यूचुअल फंड को भी निवेशकों के आधार नंबर से जोड़ा जा रहा है। एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को सभी लोगों के आधार नंबर अपडेट करने होंगे और UIDAI से वेलिडेट कराने होंगे। इस तरह सभी म्यूचुअल फंड्स को आधार से जोड़ना जरूरी होगा। आधार को म्यूचुअल फंड से जोड़ने के लिए ऑनलाइन , ऑफलाइन , SMS या ईमेल का इस्तेमाल हो सकता है। अगर इसे आधार से नहीं जोड़ा गया तो आप अपने पैसे नहीं निकाल पाएंगे। इसलिए यह काम भी 31 मार्च से पहले निपटा लें।
शेयरों पर ऐसे बचाएं इनकम टैक्स अश्विनी गोयल शेयर बाजार का मुनाफा इनकम टैक्स के दायरे में आता है। सामान्यत : शेयर बाजार में 3 तरह के प्रॉफिट आते हैं :
Long Term Capital Gains (LTCG) इसमें वे मुनाफे आते हैं जिनमें किसी शेयर को कम से कम 12 महीने तक होल्ड करके रखा जाता है। ग्राहक इसके बाद ही उसे बेचता है। Tax Rate: नेट प्रॉफिट पर 10% , पहले 1 लाख रुपये के प्रॉफिट पर कोई टैक्स नहीं लगता है
यह टैक्स सिस्टम 1 अप्रैल 2018 से लागू हुआ है। इससे पहले यह 100% फ्री था। हालांकि , निवेशकों को राहत देने के लिए इसमें एक क्लॉज जोड़ा गया है ; अगर किसी निवेशक ने बहुत पहले से ही कोई शेयर खरीदा है तो उसके लिए बेस रेट 31 जनवरी 2018 की कीमत वाला ही माना जाएगा। इसे बेहतर तरीके से समझते हैं : अगर किसी निवेशक ने 2005 में किसी से शेयर को ₹300 प्रति शेयर पर खरीदा था और वह 31 जनवरी 2018 तक बढ़कर ₹2000 प्रति शेयर हो गया हो , तो उस निवेशक के लिए बेस रेट ₹2000 माना जाएगा। ऐसे में अगर वह इन शेयरों को 31 अप्रैल 2018 को ₹2500 प्रति शेयर बेचता है तो उसकी कीमत ₹300 न मानकर ₹2000 मानी जाएगी और नेट प्रॉफिट ₹500 प्रति शेयर ही माना जाएगा।
Short Term Capital Gains (STCG) अगर किसी शेयर को 12 महीने के अंदर बेच दिया जाता है तो वह शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस कहलाता है।
टैक्स रेट : नेट प्रॉफिट पर 15 फीसदी
Derivatives यानी Business Income जो निवेशक डेरिवेटिव्स में काम करते हैं , यानी जो फ्यूचर्स और ऑप्शंस में ट्रेडिंग करते हैं या इक्विटी मार्केट के बहुत फ्रीक्वेंट ट्रेडर्स होते हैं , इसमें कमाया हुआ मुनाफा बिजनेस इनकम में ही माना जाता है। टैक्स रेट : सामान्य टैक्स स्लैब के आधार पर।
कानून के दायरे में हुए ऐसे बचाए टैक्स
तरीका 1: लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन में 1 लाख रुपये तक के प्रॉफिट पर कोई टैक्स नहीं लगता है। अगर किसी शेयर इन्वेस्टमेंट पर प्रॉफिट हो रहा है , लेकिन वह उसने बुक नहीं किया है तो एक साल में 1 लाख रुपये तक की छूट मिली हुई है। उसका उपयोग कोई फायदा नहीं हुआ है। इसके लिए निवेशक को चाहिए कि जिन शेयरों में उन्हें लॉन्ग टर्म फायदा हो रहा है , उसे 1 लाख रुपये तक बुक कर लें। फिर उन पैसों से वह अगले दिन भी शेयर खरीद सकता है , तब यह पिछले में नहीं गिना जाएगा। उदाहरण के लिए त्रिलोकनाथ ने एक कंपनी के 150 शेयर दिसंबर 2020 में ₹330 प्रति शेयर पर लिए थे। उन्होंने 1 लाख रुपये की छूट लेने के लिए ₹1125 प्रति शेयर पर पिछले हफ्ते बेच दिए। इन शेयरों को उन्होंने ₹48,500 में खरीदा था और बेचते समय इनकी कीमत ₹1,68,750 थी। नेट प्रॉफिट ₹1,20,250 हुआ , यानी टैक्स लगा इस अमाउंट पर 10% यानी ₹2025 रुपये।
तरीका 2: विना गुप्ता ने मौजूदा फाइनेंशियल ईयर में ही कुछ अच्छी कंपनियों के शेयर खरीदे थे। इसमें काफी अच्छा मुनाफा हुआ। यह मुनाफा था ₹4,05,500 । अगर वह प्लानिंग नहीं करतीं तो उन्हें 15% के हिसाब से ₹60,620 रुपये टैक्स लगता। उन्होंने कुछ शेयर लिए हुए थे Paytm के पॉलिसी बाजार के , जिनमें भारी नुकसान हो रहा था। उन्होंने यह नुकसान बुक कर लिया। नेट गेन उन्हें ₹3500 रुपये का हुआ , अब उनको सिर्फ ₹500 रुपये के करीब टैक्स देना होगा।
लेखक: Nam Securities Ltd. के फाउंडर डायरेक्टर हैं।
17-Mar-2022
Nav Bharat Times
तू शेयर में सवा शेर
शेयर मार्केट इन दिनों खूब गोते लगा रही है। छोटे निवेशकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बरसों तक मेहनत कर जमा की अपनी पूंजी को यो मिनटों में फुर्र होते देखना दर्दभरा होता है। इसलिए ही शेयर मार्केट में हर कदम फूंक - फूंक कर रखना होता है। अगर आप भी शेयरों में हुए नुकसान की जद में आ चुके है तो घबराएं नहीं। इस कहावत को गौर से पढ़ें ' हमारी गरिमा कभी भी न गिरने में नहीं है , बल्कि हर बार गिरकर फिर से उठ खड़ा होने में हैं। ' इस स्थिति में क्या करें , इस बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे है रिदम कुमार
ऐसे काबू में रखें भावनाएं।
भावनाओं में न बहें: निवेश के सबसे खराब होते हैं जो आप भावनाओं के आधार पर लेते हैं या फिर आपके फैसले लेने की प्रक्रिया को आपके इमोशन प्रभावित करते हैं। यहाँ डर और लालच दो बड़ी भावनाएं काम करती है।
पैनिक होने से बचें: शेयर बाजार में डर को काबू में रखें। मान लीजिए, आपने शेयरों में 10,000रुपये का निवेश किया। मार्केट में वे शेयर लगातार गिर रहे हैं। अब उनकी कीमत 5000 पर आ चुकी है। ऐसे में आपको परेशान नहीं होना है। धैर्य रखें, संयम से परिस्थिति बदलने का इंतजार करें। सोशल मीडिया और दूसरे लोगों की बातों में न आएं। डिमोटिवेट करने वाले कंटेट, बातों और लोगों से दूरी बना लें।
परिवार के साथ समय बिताएं: शेयर मार्केट में मुनाफा और नुकसान तो इसका रूटीन हिस्सा है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि यह पूरी प्रक्रिया तनाव भरी होती है। नुकसान में तो BP और शुगर तक शूट होने लगता है। ऐसे में अपनी शारीरिक और मानसिक हेल्थ को ठीक रखने के लिए, वे काम करें जिनमें आपको मजा आता हो। अपने डर या जो आप पर बीती है, उसे परिवार के साथ शेयर करने में काफी राहत मिलती है। थोड़ा हंसी- मजाक भी करें। इसके अलावा वॉक करना, जॉगिंग, क्रिकेट फुटबॉल खेलना जैसे काम सकते है।
जिम्मेदारी स्वीकार करें : जब आप घाटा कर चुके है, तो इसे न तो छुपाएं या न हो इससे भागे। अपने घाटे को कबूल करना आपके निवेश पर कंट्रोल लेने की दिशा में पहला कदम है।
नुकसान से सीखे : अनुभव आपको सही ऑप्शन का फैसला लेना सिखाएगा। आपका नुकसान आपको दिखाएगा कि क्या करना है क्या नहीं करना है। फिर से शुरू करने से पहले अपने की कोशिशों के लिए डिटेल योजना बनाएं । देखें कि गलती कहाँ हुई है ? शेयर में निवेश करने से पहले क्या पूरी तैयारी, पूरी पढ़ाई की? शेयर दूसरों के कहने पर ले लिए? इसके लिए पहले तो शेयर मार्केट के बारे मे अपने बेसिक्स क्लियर करें। यूट्यूब विडिये देखें, किताबें पढ़ें । शेयर खरीदने से पहले उस कंपनी के बारे में रिसर्च करें।
रिस्क और मनी मैनेजमेंट को समझें : लॉस से बचने का यह एक अच्छा तरीका हो सकता है। इसे यूं समझें कि आपने कुछ स्टॉक खरीदे। आपने अनुमान लगाया कि इन स्टॉक्स में 10,000 तक का नुकसान झेल सकता हूँ। लेकिन नुकसान इससे ज्यादा हो जाता है और आप परेशान हो जाते हैं। इसका मतलब है कि आपने रिस्क और मनी मैनेजमेंट नहीं किया। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘EAT what you can digest’ ( उतना ही खाएं जितना आप पचा सकें ), यानी शेयर मार्केट में सिर्फ उसी अमाउंट को रिस्क पर लगाएं जितना नुकसान झेल सकें।
जुए की तरह सारी रकम झोंक देना अमूमन यह देखा जाता है कि अगर किसी निवेशक को रो में काफी फायदा हो रहा है तो लालच में आकर अपने फायदे को बढ़ाने के लिए वह लगातार और पैसों को शेयर में लगा देता है। आखिर में यह नुकसान का कारण बन जाता है। शेयरों में अपने निवेश की सीमा तय करें। सीमा से बाहर न जाएं। मुनाफा उसी में न खपाएं। धीरे - धीरे बाहर निकलते रहें।
रिवेज ट्रेडिंग से बचें : अचानक लॉस हो जाने के बाद कई निवेशक यह सोचते हैं कि जल्द सारे लॉस को कवर किया जाए और शेयर मार्केट से बदला लिया जाए। इसे ही रिवेंज ट्रेडिंग कहते हैं। अच्छे - खासे लॉस की स्थिति में यह काफी जोखिम भरा हो सकता है। कई बार एक नुकसान कई नुकसान की करोड़ों में बदल सकता है।
ओवरऑल सक्सेस भी देखें स्टॉक मार्केट में अच्छा - खास वक्त गुजार चुके हैं तो स्टॉक्स से कमाई अपनी वेल्थ का मूल्यांकन करें। अगर आपके पोर्टफोलियो का सक्सेस रेट 70-80 फीसदी है। और नुकसान 20-30 फीसदी है तो इससे परेशान न हो। इसे करने का सबसे आसान तरीका है कि शेयर खरीदने बेचने पर उसी दिन कॉप पर हिसाब लिख लें। हर महीने उसकी समीक्षा करें और सीखें।
भूलकर आगे बढ़ें लॉस के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचेंगे तो इसकी गिरफ्त से कभी बाहर ही नहीं आ पाएंगे। अगर शेयर मार्केट में लंबे पारी खेलनी है तो पिच पर डटे रहना बेहद जरूरी है। एक - दो खराब शॉट लग भी जाएं तो कोई बात नहीं। उनका ख्याल छोड़कर अपनी पारी को बेहतर करें। गलतियों से सबक लें।
शेयरों को कैसे करें मैनेज
मजबूत शेयरों को होल्ड करें : वे शेयर जो कंपनी की पिछले 5 साल की ग्रोथ, प्रमोटर को हिस्सेदारी डिविडेंड का ट्रैक रेकॉर्ड और कंपनी के फ्यूचर प्लैन को देखकर खरीदे गए हैं और कंपनी की ये चीजें अब भी पॉजिटिव है तो ये शेयर नुकसान नहीं देंगे। हां , मार्केट डिप के कारण वे नीचे आ सकते हैं। उन्हें होल्ड करें। मार्केट की स्थिति सुधारने पर ये शेयर फायदा ही देगे। ऐसे शेयरों पर हो यह बात लागू होती है - मंदी अस्थायी है , तेजी स्थायी
कमजोर शेयरों को बेच दें : ऐसे शेयर जिन्हें बुनियादी बातों को नजरंदाज करके टेक्निकल फैक्टर्स ( वॉल्यूम बढ़ जाना आदि ) के कारण या मार्केट में फैली अफवाहों के चलते खरीदा गया है , उनसे तुरंत निकल जाना चाहिए। ऐसे शेयर को पहचानने का तरीका है कि वे बिना किसी ठोस वजह के अचानक बढ़ जाते हैं। उनकी कीमत बहुत ही कम समय में 50% तक ऊपर पहुंच जाती है। लेकिन जब भी मार्केट में डिप आता है तो वे तुरंत ही डूब ही जाते हैं। कोई भी शेयर खरीदते समय पूरी रिसर्च जरूर करें।
खराब बेचें , अच्छे खरीदें : मंदी आ जाए तो निवेशक लॉस शेयरों को ऐसे करें मैनेज में भी खराब शेयर बेच दें क्योंकि तब फंडामेंटल स्ट्रॉग कंपनी भी आपको सस्ते में मिल रही होगी। इसलिए आप ऐसी कंपनी में निवेश न रखें जिसका कोई बड़ा भविष्य न हो। गिरते बाजार की एक अच्छी बात है कि यह एक लॉन्ग टर्म इनवेस्टर को बुनियादी रूप से मजबूत कंपनियों के शेयर कम दाम पर खरीदने का मौका देता है।
मार्जिन या लोन से खरीदे शेयरों से जल्द निकलें : हमेशा ध्यान रखें कि शेयरों में अपनी क्षमता से ज्यादा पैसे न डालें। अगर दूसरे के फंड से शेयरों में निवेश कर रहे है तो पहले ही फॉल में निकाल जाएं ताकि किसी गंभीर स्थिति से बच सकें। बढ़ता ब्याज मुसीबत बन जाता है।
धीरे - धीरे बुक करते रहें प्रॉफिट : आम निवेशक टाइम पर प्रॉफिट नहीं बुक करते। ज्यादा कमाने के चक्कर में तेज गिरावट में मुनाफा तो गंवाते ही हैं , बल्कि नुकसान कर बैठते हैं। अगर आपके पास 500 शेयर हैं तो हर तेजी में 100 शेयर बेचते रहे। इससे आपका रिस्क कम होता है। शेयर मार्केट में आपको काफी मौके मिलते रहते हैं।
इतने से नीचे शेयर आए तो बेच दें : शेयर मार्केट में अगर आपका कोई शेयर 15% नीचे आए तो उसे बेच दें। वहीं अगर आपका शेयर प्रॉफिट में है फिर एकदम से 15% नीचे आए, तब भी बेचकर बाहर हो जाएं। इस चक्कर में बैठे न रहें कि शेयर फिर से ऊपर आ जाएगा।
ज्यादा तेजी, ज्यादा मंदी: निवेशक तेजी पर शेयर धीरे-धीरे बेचते जाएं। मंदी आने पर खरीदें लेकिन आम निवेशक इसके उलट, तेजी में और खरीदते हैं और मंदी में बेचते हैं। इससे बचना चाहिए।
पोर्टफोलियो मैनेजमेंट: अपने पोर्टफोलियो में किसी एक कंपनी पर 10% से ज्यादा पैसा न लगाएं। अपने पोर्टफोलियो में 50% लार्ज कैप, 30% मिड कैप और 20% स्मॉल कैप में निवेश करे। शेयरों में पैसा अलग-अलग सेक्टरों में बांटकर लगाएं। किसी एक सेक्टर (जैसे IT सेक्टर में 20% से ज्यादा पैसा न डालें। सारा पैसा शेयरों में ही न लगाएं। कुछ पैसा म्यूचुअल फंड, गोल्ड, प्रॉपटी, FD आदि में भी रखें।
सही सेक्टर में सही टाइमिंग रखें: जो सेक्टर ज्यादा तेजी दिखा चुका हो, उसमें प्रॉफिट बुकिंग कर लेनी चाहिए। इससे उलट लोग उसी सेक्टर में ज्यादा पैसा लगाते है, बाद में उसमें सबसे ज्यादा करेक्शन आती है।
सही जगह से लें सलाह
हर शेयर इनफ्लुएंसर को फॉलो न करें : शेयर मार्केट में जब भी तेजी आती है तो फेसबुक स्टेलियम पर नए - नए फाइनेस इनफ्लुएंसर लोगों को टिप देने लगते हैं। तेजी में भी शेयर भागते है तो आम निवेशक इंप्रेस हो जाता है। यह ऐसे को फॉलो करके बाद में अपना नुकसान कर लेता है। किसी भी इनफ्लुएंसर को फॉलो करने से पहले इसके 1 साल का रेकॉर्ड जरूर चेक करें। इसके लिए पसंदीदा इनफ्लुएंसर की ओर से बताए गए शेयर शुरू में न खरीदें 1 साल तक मोबाइल में दर्ज करते रहें। 1 साल बाद देखें उसकी सभी सलाहों को अपनी कॉपी पर या कि वे सारे शेयर कहाँ पर है ? कितने शेयर घाटे में और कितने फायदे में। अगर ऐवरेज अच्छा हो , तभी उनके सुझावों पर शेयर खरीदना 1 साल बाद शुरू कर सकते हैं।
ट्रैप से बचें : फेसबुक , इंस्टाग्राम , टेलिग्राम आदि पर कुछ ग्रुप आपको इनफ्लुएंस करने के लिए बनाए जाते हैं। उसमें लोग कॉमेंट करते हैं कि हमें हजारों - लाखों का फायदा हुआ। इस स्थिति में लोग बिना बेरिफाई और उनके रेकॉर्ड चेक किए बगैर इन लोगों के अकाउंट में पैसा ट्रांसफर कर देते हैं। इसके बाद न इनका कुछ पता चलता है और न ही आपके पैसों का। दरअसल जो लोग ग्रुप में खूब मुनाफे का ढिढोरा पीट रहे होते हैं , वे इन्हीं के लोग होते हैं। प्रो IPO के शेयर 100 का माल 60 में खरीदने के फंदे में न फंसे।
SEBI रजिस्टर्ड एनैलिस्ट से ही राय लें : जो भी आपको सलाह दे रहा है , उससे उसका SEBI रजिस्ट्रेशन नंबर जरूरी पूछें। वह SEBI रजिस्टर्ड है या नहीं , यह जांचने के लिए इसकी आधिकारिक वेबसाइट www.sebi.gov.in पर जाकर रजिस्ट्रेशन नंबर डालकर चेक कर सकते हैं।
अहम टिप
शेयर बाजार का लिया यांचा न समझ आए तो म्यूचुअल फंड के प्रोफेशनल मैनेजमेंट पर भरोसा करें। SIP करें। और यह याद रखें कि रिस्क का मतलब हमेशा प्रॉफिट नहीं है। शेयर बाजार या म्यूचुअल फंड सबके लिए जरूरी भी नहीं है।
टेंशन भगाएं
एक्सपर्ट पैनल
विनय अग्रवाल शेयर मार्केट एक्सपर्ट
अश्विनी गोयल फाउंडर NAM Securities Ltd
एकांश मित्तल फाउंडर Katalyst wealth
समीर रस्तोगी वेल्थ एक्सपर्ट
27-Feb-2022
Nav Bharat Times
Publication: NAV Bharat Times
Expert panel 27-Feb- 2022
शेयर मार्केट जब लगातार गिरे और पैसे सब शेयरों में खपें हुए हो तो क्या करें ?
इन दिनों शेयर मार्केट में उतापताक का दौर है कई अच्छी कंपनियों के शेयर काफी गिर गए हैं। अगर आप ऐसी अच्छी कंपनियों के शेयर खरीदना चाहते हैं। जो भविष्य में अच्छा रिटर्न दे सकती हैं , लेकिन इन्हें खरीदने के लिए रकम नहीं है। तो रकम का बंदोबस्त कैसे करें बता रहे हैं NAM SECURITIES LTD. के फाउंडर - डायरेक्टर अश्विनी गोयल
कहा जाता है कि शेयर मार्केट गिरे तो शेयर खरीदने चाहिए लेकिन जेब में रकम ना हो तो शेयर कैसे खरीदें यह बड़ा सवाल रहता है। दरअसल काफी लोग ऐसे हैं जो पहले से कई कंपनियों के शेयर खरीद चुके होते हैं वे अगर नया स्टॉक खरीदना चाहें या निवेश के उन्हें अवसर मिले तो वो चाहकर भी इन्वेस्ट नहीं कर पाते हैं। क्योंकि उनके पास अब इन्वेस्ट करने के लिए रकम ही नहीं होती ऐसे में वे ये तीन तरीके इस्तेमाल करके नए इन्वेस्टमेंट के लिए रकम का बंदोबस्त कर सकते हैं।
22-Jan-2022
Nav Bharat Times
Publisher: Nav Bharat Times
Date: January 2023
Jab bachana ho income tax
" अगर आपने अब तक फाइनेंशियल ईयर 2022-23 के लिए टैक्स सेविंग इन्वेस्टमेंट नहीं की है तो 31 मार्च से पहले ये जरूरी काम कर लें। किस स्कीम में होगी ज्यादा बचत , एक्सपर्ट्स से बात करके बता रही हैं - राजनी शर्मा। "
जब आमदनी बहती है तो टैक्स का डर सताने लगता है। " है। इनकम पर सरकार कुछ टैक्स लगाती है आमदनी होने पर देना होता है।
तय सीमा से ज्यादा आमदनी पर देना होता है । लेकिन इनकम टैक्स ऐक्ट में यह प्रवधान है कि हम कुछ स्कीम में रकम इन्वेस्ट करके टैक्स में कुछ छूट पा सकते है। इससे हमें थोड़ी - से राहत मिल जाती है। इन्हें टैक्स सेविंग स्कीम कहा जाता है। यह निवेश कुछ कुछ स्कीमस पर ही हो सकता है जैसे PPE, EPE, लाइफ इंश्वेरेस, प्रीमियम , ELSS,NSC, होम लोन , ट्यूशन फीस आदि। वैसे हम हमेशा ऐसे निवेश की तलाश करते है जहाँ अच्छे रिटर्न भी मिल सके। वहाँ हम बत रहे हैं ऐसी ही स्कीम ELSS के बारे में :
क्या है ELSS
ELSS ( इक्विटी लिंक्ड सेटिंग स्कीम ) टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड होते हैं। इक्विटी बानो शेयर बजार , इसका मतलब यह हुआ कि हम अपना पैसा सीधे शेर बाजार में न लगाकर इन म्यूचुअल फंड्स में लगते हैं। इसके बाद ये फंड हमारे द्वारा निवेश की गई रकम का अधिकांश हिस्सा शेयर बाजार में लगा देते है। यह करोब 80 फीसदी हो सकता है। इनकम टैक्स ऐक्ट 1961 के सेक्शन SOC के तहत हम ELSS में निवेश करके एक फाइनैंशल ईयर में अधिकतम 1.50 लाख रुपये निवेश पर टैक्स (46 हजार 800 रुपये तक ) बचा सकते है। इसलिए अगर टैक्स सेविंग स्कीम में निवेश करना है तो ELSS बेहतर विकल्प है। इसके तीन बड़े फायदे है :
कैसे करें ELSS में निवेश
अगर किसी को ELSS में निवेश करना हो तो अपने बैंक पाहनैशल एडवाइजर व ऑनलाइन म्यूचुअल फंड देने वाले प्लैटफॉर्म से संपर्क कर सकते हैं। लेकिन म्यूचुअल फंड में कितना पैसा निवेश करना है इसका फैसला फंड की पिछली परफॉर्मेस को देखकर नहीं करना चाहिए। अगर किसी एडवाइजर की मदद लेंगे तो सभी जोखिमों को ध्यान में रखते हुए सही सतह दे सकते हैं। इसमें निवेश करने के लिए Direct प्लान Regular प्लान लिए जा सकता है। डायरेक्ट प्लान में स्कीम का चुनाव खुद कर सकेंगे और रेग्युलर प्लान में एडवाइजर की मदद लेनी होती है।
कितना पैसा एक बार में लगाएं
सबसे पहले अपने सारे टैक्स सेविंग निवेश को जोड़कर देखें कि यह 1.50 लाख रु. से कितना कम है। टैक्स katoti का लाभ सभी जगह किए गए. कुल निवेश पर मिलता है। जो 1.50 लाख रु. तक ही है। ELSS में निवेश करना फायदेमंद है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि इसमें कोई रिस्क नहीं। यह बाजार से लिंच है तो मार्केट के चढ़ने का गिरने से यह भी प्रभावित होता है। इसमें कम से कम 500 रुपये हर महीने निवेश कर सकते है लेकिन बेहतर होगा कि हर माह कुछ हजार रुपये करें।
निवेश SIP से या एकमुश्त रकम
हर महीने निवेश करने के लिए सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) करे। इससे बाजार के उतार- चढ़ाव का फायदा मिलेगा। इसे 3किस्तों मे बाँट सकते हैं जैसे इस महीने यानी जनवरी में ही 50 हजार रु. और फरवरी व मार्च में फिर 50-50हजार रु. निवेश कर सकते है या एकमुश्त राशि 1.50लाख रु. निवेश करें।
सही विकल्प चुनें
ELSS में 2 विकल्प भी मिलते हैं डिविडेंड यानी लाभांश और दूसरा ग्रोथ प्लान है आप अपनी सुविधा से इनमें से कोई भी प्लान चुन सकते हैं। डिविटेट प्लान का मतलब है कि हर साल अपने लाभांश पर tex देना होगा जबकि ग्रोथ प्लान में पैसे निकालने पर ही टैक्स लगता है।
कितना है लॉक-इन पीरियड
टैक्स सेविंग की नई स्कीम है लेकिन सबसे कम लॉक-इन पीरियड ELSS का है। अगर FD करते हैं तो लॉक- इन पीरियड 5 साल का होता है | PPP में 15 साल और NSC में 5 साल ELSS को छोड़कर इन सभी स्कीम्स में फिक्स्ड रिटर्न मिलती है। अगर कोई ELSS में निवेश करता है ते वह अपना पैसा 3 साल से पहले नहीं निकाल सकता। लेकिन कोई 3 साल बाद चाहे तो पूरा जमा पैसा और उसका रिटर्न निकाल सकता है। चाहे तो इस निवेश को जारी रख सकते हैं।
एक्सपर्ट पैनल
कितना मिल सकता है रिटर्न
ELSS बाजार से liquid होने की वजह से इससे हमेशा एक जैसा रिटर्न नहीं मिलता। कभी रिटर्न कम हो सकता है और कभी यह भी हो सकता है कि रिटर्न नेगेटिव हो जाए। इसलिए सिर्फ 3 साल के लिए निवेश करने | पर कितना फायदा होगा यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन लंबे समय के लिए निवेश करने पर फायदा होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। एक्सपर्ट कहते है कि 5 साल से ज्यादा वक्त तक निवेश करने पर 12 से 15 फीसदी तक रिटर्न आसानी से मिल सकता है। हालांकि कुछ टॉप के फंड 30 फीसदी तक भी रिटर्न दे चुके है। वैसे ध्यान रखें कि रिटर्न की कोई भी गारंटी नहीं होती है।
FD से कितना अलग है ELSS?
जब हम ELSS में पैसा लगाते है तो म्यूचुअल कंपनियां इसमे से करीब 80 फीसदी तक हिस्सा शेयर बाजार में लगा देती है जे कर्म एक जैसा नहीं रहता। जैसे इन दिनो शेयर मार्केट में कार्य हलचल देखी जा रही है। ऐसे में ELSS में किया गया निवेश रिस्क में रहता है। हालांकि रिटर्न भी काफी अच्छा मिल जाता है। वहीं टैक्स में निवेश से पहले ही रिटर्न की पूरी जानकारी मिल जाती है। लेकिन रिटर्न काफी कम करीब 4-6 फीसदी ही रहता है पर रिस्क न के बराबर होता है। लेकिन इस पर टैक्स ज्यादा देना होता।
मुनाफे पर कितना टैक्स
ELSS में लॉक-इन पीरियड खत्म होने के बाद व कभी भी पैसा निकालने पर 1लाख रुपये तक के मुनाफे पर एक पाइने इसमें कोई टैक्स नहीं देना होता लेकिन इससे ऊपर के मुनाफे पर 10 फ्लैट की दर से टैक्स देना होता है। अगर आप पूरा पैसा लेना चाहते है तो इसे आप 1-1लाख के मुनाफे के हिसाब से हर फाइनेशल ईयर में निकल सकते हैं क्योंकि 10सेंट टैक्स 1रुपये से ज्याद के मुनाफे पर ही लगता है।
कार का दरवाजा खोलने में बरतें यह सावधानी
कुछ दिन पहले की बात है। सड़क पर एक सफेद कार तेज स्पीड से गुजर रही अचानक एक गाय सामने से आती दिखी तो कार ड्राइवर ने किसी अनहोनी को देखने के लिए अपनी कार लेफ्ट सहड की ओर कर दी। लेकिन सड़क पर लेफ्ट साइड में ही खड़ी एक लाल रंग की कार के डाइवर ने अचानक कार का दरवाजा खोल दिया। जैसे ही दरवाजा खुला तो पीछे से आ रही सफेद दरवाजे से टकरा गई। लाल रंग की कार दरवाजा सड़क पर दूर जाकर गिरा और ड्राइवर के कंधे में भी चोट आई। अचानक हुए इस हादसे से सफेद कार राइवर घबरा गया और उसकी कार आगे एक पार्क की रेलिंग से जा टकराई। अब इस बात पर बहस हो सकती है कि गलती किसकी थे लेकिन एक खास ट्रिक अपनाकर ऐसे हादसे को रोका जा सकता है।
ऐसे कम होंगे हादसे
कार का दरवाजा अचनक खुलने से पीछे से आ रही बाइक और कार के उसमें भिड़ जाने से अक्सर हादसे होते हैं। ऐसे हादसों की वजह कार के ड्राइवर की जल्दबाजी ही नहीं होती व पीछे से आ रहे वाहनों की तेज स्पोड़ कई बार कोई साइकल पीछे से आ रही होती है तो साइकल सवार को दरवाजे से चोट लग जाते है। इसके लिए जरूरी है कि हम फ्रंट और बैक साइड कर ध्यान रखते हुए दरवाज खोलें। साथ ही एक खास टेक्नीक सीख ले ते हादसों में कमी लाई जा सकती है।
इसे कहते हैं 'डच रीच'
कार का दरवाजा खोलने की इस खास टेक्नीक को डच रोच कहा जाता है। नीदरलैंड में इसकी शुरुआत हुई कम चौड़ी सड़कें होने की वजह से लोगों को इसकी ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे पीछे से आ रही गाड़ी व बाइक देखी जा सके और हादसे कम हो।
कहां गलती करते हैं
हम सभी अपने उसी हाथ से कार का दरवाजा खोलते हैं जो दरवाजे के बिलकुल पास में होता है लेफ्ट साइड का दरवाजा लेफ्ट हैड से खोलते है और वह साइड का दरवाजा खोलने के लिए राइट हैड का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन जब भी हम राइड हैड से दरवाजा खोलते हैं तो अपनी गाड़ी के पंछे से आ रही बार व बहक व साइकल आती हुई नहीं दिखती है और अचानक दरवाजा पूरा खुल जाता है।
यह है सही तरीका
28-May-1996
Economic Times
Publication:Economic Times
Date: 28 May 1996
A Gutsy Money-Maker
ASHWANI GOYAL, chairman of Nam Credit and Investment Consultants, cashes in on the stock market by taking risks. And he will soon acquaint the populace on how to take these risks, in his maiden television show — Money Maker on Doordarshan from June this year.
"Accepting a challenge, taking the risk and trying to make the best of it have been my principle in life," Goyal confesses.
When he quit a successful practice in Amritsar as a chartered accountant in 1985 to enter merchant banking in Delhi, Goyal was certainly taking a risk.
One that has paid rich dividends. His turnover on the DSE reached Rs 70 crore in 1995-96 from just Rs 2 crore in 1991-92. His turnover on the National Stock Exchange, where he started business only five months ago, has climbed to an impressive Rs 250 crore.
"I began in the ’80s when the Delhi Stock Exchange had invited professionals to take its membership," Goyal recalls. To learn the ropes of stock broking, Goyal had to go to the trading floor and write the accounts book himself. "We succeeded because of discipline and prompt service."
Today, Goyal has taught himself all there is to know about merchant banking. "Luckily, the first issue I managed was oversubscribed five times." But, to offset the uncertainties in that business, he has also branched into project counselling.
As stock broking becomes less and less time-consuming, thanks to better communication systems in India, Goyal now finds spare time to anchor a television show.
"The programme is about investment opportunities in the stock market as well as bullion and other trades," he explains. And he is finance manager enough to be attracted by the monetary aspect of television shows as much as it’s phenomenal reach as well.
Rajiv Nagpal
15-May-1995
PPublication: Dalal street
Date: 15-may 1995
Industry At Takeoff Stage But...
Although the economy is conducive to growth
Without infrastructural development
the industry will find it difficult to meet
global challenges.
"The market, sluggish from the beginning of 1995, is expected to remain so till the year-end. 1995 could well be called an election year, and due to political uncertainties one could avoid investments in equity. The other reason for the sluggishness is on account of flow of paper in the primary market. And unless SEBI stops or regulates the flow, both the primary and secondary markets will be hit badly.
The market has bottomed out and even if it dips further it will not fall below the 3000 mark in the worst possible case, come what may. And in the event SEBI emerges with some stringent guidelines for the primary market or introduces the new carry forward trading system, the index will not cross the 4000 mark in 1995. A crucial factor which is of serious concern is that companies engaged in industry and trading be banned from investing in the capital market.
Secondly, the sudden entry and pullout of FIIs also needs to be looked into, as these two factors are responsible for the jerks in the market. The government should strictly disallow diversion of funds. As for the FIIs, it was only in July 1994, when the index was 4100, that they entered the Indian bourses in a major way and continued to do so till mid-September when the index was at its peak of 4550. In November and December, they started liquidating their holdings because they had entered the market late, when it was at its peak. This short-term investment created panic and, in that respect, FIIs have not been wise operators on the Indian floors.
However, the economic environment is conducive and the Indian industry is at the takeoff stage. But without infrastructural development, our industries could find it difficult to meet global challenges. Telecom, power and transport could be the industries for investment here again, if this industries are not upgraded in terms of technology and product ,they will find themselves slipping out. The steel and cement industries, dormant for a longtime, have shown positive signs of growth. Besides these two industries are the only one which invite invite least competition from international players.
Despite current market conditions, some scrips that could be worth a look at are Tata Steel and Reliance, both of which are currently ruling at their bottom prices. These scrips should be the first to move on with the introduction of the new carry forward system. Tata Steel is on a major expansion programme. Among cash scrips, the BSES, at its current price of Rs 150-155, is the cheapest share available in the power sector. Apart from putting up a 500 MW plant recently, BSES is the electricity distributor for Bombay and is fundamentally a good scrip. Kelvinator is another steady growth share whose product is deep-rooted, enjoys goodwill in the market, and has a presence in the consumer durable industry, now a booming sector. Havell's could be another good buy because of its presence in the electronic industry, sound promoters, and an expansion programme.
Amongst the newly-listed shares, PG Foils and GR Cables & Telecom are worth a dekko . The Pg foils issue was oversubscribed 50 times. It has a presence in the aluminium industry, which is doing well, and the promoter’s background is sound. Gr cables has a good track record with a foot- hold in the growing industry, Besides the sops given to the telecom industry in the 1955-96 union budget will add to its performance.
15-May-1995
(Publication: Guardian Investor)
Market Movers
We are not suggesting jobbing in shares for short terms gains till the elections. The market at the moment is at 3000 bottom and 4000 upper limit. Volume is very poor and fundamentals are not giving any benefits. At the moment Reliance at 250-260 and Tata at 220-225 are good but even they are good buys but even they are not recommended for longer period. Investors should resort to buying when the market bottom down to 3000. The waiting period is longer say about 3-4 months, but the chances of instant profits are minimal. At the moment are BSCS, Castrol, L&T, Reliance, Shipping, Credit SAIL, Tata Power, Tata Steel, and TELCO are safe bets at the level of 3000.
Investing in shares is not considered safe and people prefer investing in real estate and fixed deposits because the laws of equity which govern are not full proof. Indian Stock Market is highly volatile and influenced by political and economic factors.
Also the investors are immature and shakey. Until the laws are streamlined and investors become mature, long term investing in shares will be risky. Investors are not interested in high dividends, they want capital appreciation and because of that they do not mind investing in blue-chip companies who pay less dividends.
— Saguna Narula
Ashwani Goyal
Chairman, NAM Credit & Investments
15-May-1995
(Publication: Economic Times
Opinion section 15-may-1995)
Miles to go before bucking indices are broken
Though the Indian stock market has improved on many fronts, the recent global meltdown has brought into focus many areas where it lacks strength.
The Indian capital market has come a long way. Investors are fully protected so far as dealings with brokers are concerned. Brokering houses are fully computerized and institutionalized, and with trade guarantees being introduced, there is transparency, high liquidity, and security. Under the outdated outcry system, when everything was manual, right from placing orders to final payments, the modus operandi has been fully computerized and mechanized. The advantages are visible in the form of competitive brokerage, 100 per cent transparency, high liquidity, best pricing, payment security, and so on.
But there are many fronts which are equally important and affect the end result of trade. The field left untouched by the regulators and opportunity untapped by the corporate world is investor information.
In India the small investor, who is the backbone of the market, is the last one to get information, whether it be corporate results or any developments in the country or in world. Developments around the world and their impact on the Indian bourses last week have further increased the importance of information to the small investors.
Currently, there are few companies that provide corporate data. The cost of such data is too high. There should be a mechanism through which comprehensive information should be made available to investors.
Financial newspaper and magazines, source of information are inadequate to enable millions of investor take decision relating to the 7000-odd listed companies in India. In addition to that, stock markets in India are determined by the changing attitudes of the investor to-ward a variety of economic, monetary, political and psychological forces.
With the coming of FII’s, foreign brokers and OCB’s into the Indian stock markets, the behaviour of stock markets in major stock exchanges such as New York, Tokyo, Hong Kong and Singapore had to studied. Look to the recent fall in the Indian stock market which was related to the fall of Hang Sang & Dow Jones indices. Several megabytes of data is required to enable an investor to take decisions and set the trends. Financial papers/magazines are only one way of providing information and has its own limitations. Another source of information is the half yearly results and annual reports of companies. Yet, there are so many problems with regard to the availability of annual reports to investors. As per provisions of the Companies Act, 1956, Reports have to be sent to shareholders of that company. What about other investors who want to invest or disinvest in the scrip. They can approach the company or the ROC, which is a time-consuming process. Although they are certified as true and fair, they do not depict the true picture. See the case of CRB Capital, where the annual reports never warned of the alarming picture. Suddenly the bubble burst and everything was over. Even the credit rating agencies could not perform upon the mark and the lapses taken to gather trapped thousands of investor all over the country. Few financial programs have started on media which provide outdated information and are quite inadequate.
The need of the hour is to get updated information on everything affecting stock prices, so readily accessible to the investors, as ready are the trading systems. Otherwise, every decision would be haphazard amounting to speculation. Perhaps, that is the reason why most investors are trading in losses. This area can be looked into by the stock exchanges themselves. Some space on the trading screen should be used to give accurate and fast information regarding developments affecting the stock price.
Another area requiring attention is the process of share transfer. Most companies or their registrars do not bother to fulfil provisions of the law regarding transfer of shares. There are continuous violations of clause 12 of the Listing Agreement 1956 and the provisions of the Securities Contract Act & the Companies Act.
There are many cases where the transfers are refused merely by filing of complaints in courts without obtaining prohibitory orders. Similarly, communications of refusal to transfer in many cases are reported beyond 60 days. On minor differences in signature of transferors, companies return the share without affecting transfer. In many cases, shares once transferred are declared bad on the grounds that they were wrongly transferred earlier.
These increase paper work & complications both to the brokers and the stock exchanges. It is time the regulatory body sets this huge machinery working smoothly.
(The author is a member of the Delhi stock exchange.)
15-May-1995
Publications: THE ECONOMIC TIMES
Date: MONDAY 30 DECEMBER 1996
Section: FINER POINTS
Unrealistic laws spell doom
The need of hour is to regain the small investor’s faith and confidence in the stock market. Besides if an age old system is done away with an alternative.
Don't we agree that currently the economy is in recession? Not only is the stock markets in bad shape, but also demand and consequently the prices of real estate, bullion, industrial, and domestic products are on the decline. Despite financial institutions, banks, investors, and consumers having plenty of funds, their willingness to buy has been considerably reduced. There is a panic-like situation that cannot be overcome overnight. BSE Sensex has shown an all-time low of three years, breaking the psychological barrier of 3000, and there is every fear that it may go below 2500. More worrying is the lack of faith of investors in the stock markets. Earlier, an average issue would be over-subscribed 10 times or more. Currently, there are several issues where there is not even a single applicant for even 500 shares, in even metropolitan cities. More so NRIs do not entertain any inquiries for primary issues or private placements, whereas there were large queues in the old days. Secondary market is getting an equal beating, and there are no buyers of even blue-chip scrips at rock-bottom prices. Neither are they showing any interest in speculative trades, because of narrow fluctuations, low volumes, and stiff norms. More serious is the fact that most of the intermediaries’ market is winding up operations after tougher regulations, high capital adequacy norms, exorbitant operational costs, and low brokerage. It has become economically unviable to break even and unwise to own additional risks by introducing any delivery in the market. There are various regulatory bodies working for investors’ protection, whereas there is none for brokers’ protection. That most risky trade where the brokers stake their career and wealth are still subject to investigations and scrutiny.
The present situation has arisen not in a single day, nor by one class of people, nor by one mistakes, but has accumulated over a period of time, after several mistakes by all the intermediates and regulatory bodies. This shown that the market can be corrected and recovery process can start by initiating the most considered and combined efforts all of us.
Let us first analyse critically various amendments/policy decision taken by the regulatory bodies in recent times.
If one unfolds the history behind each guideline, you will find that they were introduced to correct one problem, without deliberating its side effects. For example, badla system which was prevalent for last so many decades has been abolished, and alternative of ‘futures and options’ be introduced simultaneously with badla, and the system with lesser advantages die its own natural death, may it be badla or future or options. Abolition without introducing an alternative was a hasty decision.
Although, computerisation was a step in the right direction, there was no synchronizing the efforts of the stock exchanges/brokers. Each stock exchange spent crores of rupees in introducing the system, resulting into wastage of precious reserves accumulating into wastage of changes over a period of time. Neither any monetary benefit by way of grants/aids was any given by the government. Similarly, each broking house spent their funds in computerisation-/training. The situation became aggravated when each of brokers was compelled to pay capital adequacy/levies eroding their investible funds with business. More so, to comply with stiffer and tougher guidelines, staff strength creased, leading them in pitiable state.
More worrying for the brokers is the problem of bad delivery, where their responsibility has been increased to three years. Whereas, the bad deliveries took place, first, owing to mischievous attitude of the sellers, secondly negligence in handling signature tally process by the transfer agents and thirdly increase in the number of thefts/forged cases. Untrained staff at share transfer agents handle the job of signature tally and makes even a minor difference, return the shares un transferred, no matter whether the public authority is attested by the broker/notary or any authorised set person. Problem of bad delivery and time in rectifying it.
Although free pricing of public rights issues was a step in the right direction which has often been misused by the promoters and their advisors. Pricing should be done with ceiling of book value, and buy-back clause should have been imposed on the promoters. Currently, pricing is decided looking to the market behaviours and that is why, when markets are up, offers price reduced for the same standard of issue.
This is a bad practice why we forget that the primary and secondary markets are interdependent since we exploit any of it, it shall have an adverse impact on the other.
The need of hour is to create faith a confidence of the public in stock market. For that stock exchange, brokers and other intermediaries should combine their efforts to restore the confidence, dignity and return of the stock markets. Once, we have created and increased our capacities manifold, we must utilise business sense to make an adequate utilisation of the capacities.
Ashwani Goyal is chairman — Nam Securities Ltd
15-May-1995
(Publication; Economic Times, investor guide)
A Question of Survival
Despite improved infrastructure and increased opportunities stock brokers continue to look for business.
This has become most important to take full advantage of tonnes of money spent in enhancing technological and Operational capacities at stock exchanges. Trading hours have been increased from two to six and a half hours per day. The system of making transaction is fully computerized and inter and intra city terminals are speedily being put up, working brokers to simultaneously operate on Lan and Wan technologies. At the press of a button, it is possible to transact business worth Crores of rupees in a diverse range and variety of shares .Clearing hours and banks are functional in major stock exchanges. National Securities Depositories Ltd. (NDSL) is speedily increasing coverage in various parts of the country. Trading in demat forms have started and made compulsory partially on 10 most traded equities and further enlarge the list in the days to come. Trade guarantee funds are brought in millions of rupees. It has become important for all brokers to fully computerize transaction which has become possible by huge expenditure on purchase of Servers, Computers, Computer software, modems, etc., VSATs and by employing trained staff. Rules and regulations governing the operations have been laid down and strengthened adding to cost & efforts. Cost of membership & cards, annual subscription, transaction cost, sales, interest and taxes has further added to brokers worries. Membership Entrance fees which was Rs.4 lakh in ’90 at Delhi stock exchange (DSE) and Rs25 lakh in ’92-93 at The Bombay stock exchange(BSE) has been enhanced to Rs.75 Lakh at National stock Exchange(NSE), and a bank guarantee /FD of Rs.25 lakh and additional guarantee of several lakh depending on volume. Annual subscription charged even today by the Delhi stock exchange and Bombay stock exchange is less than 10,000. It has been fixed by the National Stock Exchange Rs 1lakh. There are no transaction charges on the DSE/BSE, whereas these are levied on the National Stock Exchange.
Money spent on purchase of computers, modems & ATs has depreciated by an enormous amount. Computer Hardware previously available at Rs.150 lakh or so are now available at just1/5th of the price today. Infrastructure like telephone liners/powers are totally unreliable adding to functional problems. VSATs/IDU/ODU forced upon each member, besides higher costs are so obsolete in function and technology that there are insurmountable installation problems. In the countries where from the technologies were taken, there are window antennas of much higher weight and dimensions, whereas antennas imported by us cover 8' * 8' of area on roof tops weighing more than 800 kgs. In multi-storey buildings where most brokers house their offices, owners of the buildings demand exorbitant rents for putting antennas. There is competition within the stock exchanges with one stock exchange is selling VSAT for Rs 5 lakh, another for Rs 2 lakh and a third for Rs one lakh. DSE has even permitted as many as 25 brokers to operate under one VSAT. But nothing of the kind is available on NSE. In consideration of all above, what are the opportunities available for brokers and investors?
They are still groping in the dark, doing mostly speculative business and very little of delivery-based business.
Brokers and their clients trade in these scrips and most of them square up transactions resulting in losses, and net delivery-based business is too little. Whatever delivery-based business is done, a major chunk of it results in bad deliveries due to signature differences, thefts and duplicates, court injunctions leading into litigations and disputes in various courts and arbitrators.
There is little finance available with Indian brokers because major chunks are blocked in membership cards, margins and bad deliveries. Banks discourage financing brokers. Perhaps due to the above reasons, the state of affairs of the Indian broker has become very weak and their volumes of business have heavily shrunk. What to talk of expansions. In fact, there is a question mark on survival itself.
Once so much infrastructural cost has been incurred, it becomes imperative to recognize the status of the broker. No institution can grow without the growth of its members. They must be considered an important and indispensable part of the institution. Whereas day to day, they are losing their financial health, status and recognition. For the protection of investors, brokers can play an indispensible role by approaching them in urban, semi-urban and rural parts of the country, provided they are equipped with the requisite powers and status and are provided education and data base for carrying out operations.
Secondly, there must be wide opportunities available to take full advantage of the infrastructure cost. Badla trading, index trading derivatives, futures and options should be immediately introduced on major stock exchanges. Financing of deliveries should be more easily available and margin requirements liberalised. Derivatives narrowly defined as forwards, futures, options and swaps; appear to be a fact of modern financial life of companies engaged in the stock broking business. Primary beneficiaries of these technological up gradations are its members who benefit from the scale of their business and infrastructure.
There are also, of course, the investing public who buy and sell stocks through the exchanges and companies which list their shares for trading. If the stock markets provide greater liquidity to their shares, companies will be able to raise capital at lower cost which will benefit not only their shareholders but the nation as a whole.
—The author is a member of the Delhi Stock Exchange
15-May-1995
Nav Bharat Times
Publication: NAV Bharat Times
Date: 23-july-2023)
लॉक (r) किया जाए
बैक के लॉकरसे जुड़े नियम बदल गए हैं। अगर बैंक में आपका लॉकर खुलवाने की सोच रहे हैं तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के नियम की जरूर जान लें। इन नियमों में स्टॉप पेपर पर एग्रीमेंट साइन करने से लेकर चीजों की सुरक्षा और हर्जाने तक की बात कही गई है।नियमों के बारे में एक्सपर्ट्स की जानकारी लेकर बता रहे राजेश भारती
काफी लोग ऐसे हैं जो जूलरी से लेकर जरूरी डॉक्यूमेंट्स तक बैंक के लॉकर में रखते हैं।कई बार समस्या तब आती है जब लॉकर में रखी पीड गायब हो जाए या उसे नुकसान पहुंच जाए। ऐसे में रिजर्व बैंक ने बैंकों की जवाब देही तय की है। वहीं लॉकर लेने वाले कस्टमर की भी कई जिम्मेदारियां तय की गई है। इस बारे में रिजर्व बैंक ने अगस्त 2021 को एक नोटिफिकेशन जारी कर नई गाइडलाइंस को घोषणा की थी। नए नियम 1 जनवरी 2022 से लागू हुए थे जिसे रिजर्व बैंक ने पहले 1 जनवरी 2023 तक बढ़ाया। इसके बाद कुछ नियम जोड़कर इसे 31 दिसंबर 2023 तक फिर से बढ़ा दिया है।लॉकर 1 जनवरी 2023 से पहले का है तो बैंक कस्टमर को मेसेज भेजकर बैंक आने और अग्रीमेंट पर साइन करने के लिए कह रहे हैं। अग्रीमेंट में लॉकर से जडे नए नियमों के बारे में बताया गया है।
अगर पहले से लॉकर है तब ...
नए नियम
5 बड़े बदलाव
सिर्फ ज्वेलरी दस्तावेज़ ही लॉकर में रखने की इजाजत होगी कोई भी शख्स लॉकर में देसी , विदेशी करेंसी , ड्रग्स , हथियार , खराब होने वाली चीज़ें , और रेडियोलाइटिस पदार्थ नहीं रख सकता अगर बैंक को लगता है कि कोई कस्टमर लॉकर में ऐसी चीजें रख रहा है बैंक उसके लॉकर को कस्टमर और कुछ दूसरे अधिकारियों की मौजूदगी में चेक कर सकता है ऐसी चीजे मिलने पर बैंक उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है।
अगर कस्टमर को लग रहा है कि 2 उसके लॉकर में रखी चीजे बैं की लापरवाही की वजह से खराब हो सकती है तो वह बैंक ने इस बारे में कह सकता है। अगर बैंक चीजों को दुरुस्त न करे तो ग्राहक बैंक के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकता है।
कस्टमर को बैंक के साथ एक अग्रीमेंट साइन करना होगा। इसमें एक स्टॉप पेपर भी लगेगा। अलग - अलग राज्यों में स्टॉप पेपर अलग - अलग कीमत का हो सकता है। यह 100 रुपये से 500 रुपये तक हो सकती है। अग्रीमेंट के दौरान पूरे डॉक्यूमेंटेशन ( स्टॉप पेपर समेत ) में जो भी खर्च आएगा वह बैंक उठाएगा। कस्टमर को एक पैसा भी नहीं देना होगा।
लॉकर की सुरक्षा को लेकर भी 4 रिजर्व बैंक ने नए नियम बनाए है। लॉकर लेने के बाद कस्टमर जब भी बैंक जाएगा और लॉकर खोलेगा व बंद करेगा, इसकी जानकारी पुष्टि के रूप में उसी दिन रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर मेसेज के जरिए और रजिस्टर्ड ईमेल आईडी पर भी दी जाएगी।
अगर आग लगने , चोरी, लूट, डकैती, संधमारी, बैंक की बिल्डिंग गिरने,बैंक की लापरवाही आदि के कारण •लॉकर में रखी चीजों को नुकसान हुआ तो इसकी जिम्मेदारी बैंक की होगी। ऐसी स्थिति में नुकसान होने पर बैंक को हर्जाने के तौर पर कस्टमर को लॉकर के सालाना किराए की 100 गुना रकम तक देनी पड़ सकती है। हालांकि कुदरती हादसों जैसे बाद, भूकंप, बिजली गिरने, तूफान, दंगा, आतंकवादी हमला, कस्टमर की लापरवाही आदि के कारण अगर लॉकर में रखी चीजों को नुकसान पहुंचता है उसकी जिम्मेदारी बैंक की नहीं होगी।
क्या करें लॉकर धारक ?
कैसे पता चलेगा कि मुझे नए एग्रीमेंट पर साइन करके उसे जमा करना है ?
बैंक अपने मौजूदा लॉकर धारकों को रजिस्टर्ड मोबाइल पर मैसेज करके जानकारी दे बैंक आएं और नए एग्रीमेंट पर साइन करके उसे जमा कराएं। । इसके लिए रिजर्व बैंक ने आखिरी खरीख 31 दिसंबर 2023 जप करे है। कस्टमर जिन्होने दिसंबर 2022 से पहले नए अप्रेटर उन्हें जमा करा दिया है से हो सकता है कि बैंक उन्हें फिर से बुलाकर रिवाइज कर मेट पर साइन करवाए। ऐसा इसलिए क्योंकि रिजर्व बैंक ने जनवरी 2023 को एक नया र जारी कर रिवाइज्ड मॉडल ने पेश किया था जिसमे जाने के बारे में बताया था। ऐसे में बैंक नए सर्कुलर का हक देवाटि पर साइन करवाने के लिए फिर बुला सकते हैं।
अगर मैं साइन न करूं तो क्या होगा?
नए अमेंट पर साइन नA करने पर पैर धारक को लॉकर ऑपरेट करने से मना कर सकता है। बैंक कह सकता है कि पहले अग्रीमेंट पर साइन कीजिए। उसके बाद ही लॉकर ऑपरेट कर पाएंगे। हालांकि बैंक ऐसा 31 दिसंबर के बाद ही कर पाएंगे।
क्या फिर से KYC करवानी पड़ेगी ?
नए एग्रीमेंट पर साइन करते समय बैंक फिर से KYC करवा सकता है। इसके लिए PAN और आधार कार्ड की फोटो कॉपी जमा करानी होगी। PAN और आधार का आपस में लिंक होना जरूरी है। नए एग्रीमेंट पर साइन करने जाते समय PAN और आधार कार्ड की एक - एक फोटोकॉपी ओरिजिनल डॉक्यूमेंट्स के साथ और पासपोर्ट साइज के दो फोटो भी लेकर जाएं।
नया लॉकर खुलवाना है तब
जाने क्या है लॉकर एग्रीमेंट
बैंक में कस्टमर के साथ एग्रीमेंट किया जाता है। इस एग्रीमेंट में बैंक और कस्टमर के सभी अधिकार और जिम्मेदारियों के बारे में लिखा होता है। नया एग्रीमेंट स्टांप पेपर पर बैंक और कस्टमर दोनों के द्वारा साइन किए गए दस्तावेज़ करता है। बैंक ( यह ग्रंथ बैंक ने लिया है ) अपने पास रख लेता है और लॉकर को कस्टमर को दे देता है।
क्या सेविंग अकाउंट खुलवाना जरूरी है दिसांच में आप लॉकर लेना चाहते हैं, उसमें A अगर आपका अकाउट नहीं है तो वहाँ आपको सबसे पहले बैंक में सलाना होगा। यह इसलिए जरूरी है ताकि बैंक लॉकर के किराए को रकम उस अकाउंट से वसूल सके। बा सती है कि अकाउंट खुलवाने पर शुरुआत में कितनी रकम जमा करानी होगी। इसके लिए अलग-अलग बैंकों के अलग-अलग नियम है। हो सकता है कि कोई बैंक सिर्फ न्यून रकम पर हरे अकाउंट खोल दे। अकर कितने रुपये से खोला जाएगा, इसके लिए भी अलग नियम है।
बैंक में कर लेने के एफडी की जरूरी है।
है जो लॉकर को न तो कल तक खोलते है और न ही उसका किराया देते हैं। ऐसे में बैंक के लिए, यह मुश्किल हो जाता है कि वह उस लॉकर को चालू रखे या कस्टमर को बुलाकर बंद कर दे। इसलिए अब बैंक लॉकर देने के साथ-साथ एफडी भी करवा सकता है। एफडी को रकम लॉकर के सालाना किराए से 3 गुना से 5 गुना तक हो सकती है या बैंक कोई एक फिक्स्ड रकम जैसे 20 पर 25 हजार रुपये की भी एफडी करवाता है। एफडी की यह रकम इस बात की गारंटी होती है कि अगर कस्टमर तीन साल तक लॉकर का किराया नहीं देता तो इसका भुगतान कस्टमर की एफडी की रकम से किया जाएगा। वैसे, रिजर्व बैंक की गाइडलाइस में साफ लिखा है कि एफडी खुलवाने के लिए बैंक मौजूदा लॉकर धारको को मजबूर नहीं कर सकते। साथ ही पुराने लॉकर धारकों से भी एफडी खुलवाने के लिए नहीं कह सकते जो अपना लोकर अच्छी तरह से ऑपरेट कर रहे हैं और समय से लॉकर का किराया देते हैं।
क्या मेरे परिवार का कोई या दोस्त भी मेरा लॉकर खोल सकता है
हाँ, कोई दूसरा शखर (रिस्तेदार, दोस्त आदि) आपके लॉकर को ऑपरेट कर सकता है। हालांकि इसके लिए उसे बैंक को बताना होगा यानी ऑथराइज्ड करना होगा कि किसे लॉकर ऑपरेट करने की इजाजत की होगी। बैंक की जिम्मेदारी है कि वह उस शख्स को पहचान को वेरिफाई करे। इसके बाद ही उसे लॉकर ऑपरेट करने की परमिशन दी जाए
कैसे ले सकते हैं लौकर जरूरी नहीं कि हर बैंक ब्रांच के पास लॉकर की जाकर सुविधा हो। किस ब्रांच में लॉकर है, कहाँ लॉकर की उपलब्धता चेक करनी पड़ती है। वैसे इन दिनों लॉकर की काफी डिमांड है। हमने कई बैंकों में जाकर लॉकर की उपलब्धता के बारे में जानकारी ली। आधे से ज्यादा बैंकों में खाली लॉकर मौजूद ही नहीं थे। काफी बैंक ऐसे है जहां बेशक आपका अकाउंट हो लेकिन लॉकर शायद ही मिले। ऐसे में हो सकता है। कि आपको अपना अकाउंट इस बैंक में भी खुलवाना पड़ जाए जहां लॉकर मौजूद हो। कई बैंक लॉकर की ऑनलाइन रिक्वेस्ट लेते हैं। अगर वहाँ लौकर मौजूद तो मिल जाएगा नहीं तो इंतजार करना पड़ सकता है। अगर किसी बैंक में लॉकर मौजूद है तो वहां सेविंग्स अकाउंट खुलवाने और एफडी करवाने के बाद ही लॉकर मिलेगा। इस पूरी प्रक्रिया में एक हफ्ते तक का समय लग सकता है।
जानें, क्यों आए नए नियम
रिजर्व बैंक को लॉकर से जुड़े नए नियम सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जारी करने पड़े। दरअसल, अमिताभ दास गुप्ता ने एक बैंक पर आरोप लगाया था कि बैंक ने उन्हें जानकारी दिए बिना उनका लॉकर तोड़ दिया। उसमें कुछ जूलरी रखी हुई थी। बैंक ने पूरी जूलरी वापस नहीं की। मामला कंस्यूमर कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था। फरवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बैंक पर जुर्माना लगाया था और लॉकर से संबंधित नए नियम बनाने के लिए रिजर्व बैंक को आदेश दिया था
लॉकर तोड़ते समय बैंक की जिम्मेदारियां
बैंक लॉकर तोड़ने से पहले कस्टमर को 1 महीने का नोटिस देगा।
लॉकर तोड़ने से पहले बैंक दो अखबारों (1 नैशनल और स्थानीय) में एक विज्ञापन देख , लॉकर तोड़ते समय बैंक के दो ऑफिसर और दो गवाह मौके पर मौजूद रहेंगे और लॉकर तोड़ने का पूरा विडियो बनाया जाएगा। विडियो में यह भी दिखना चाहिए कि लॉकर में क्या-क्या चीजें थी।
नोट: बैंक द्वारा अखबार में विज्ञापन देना, लॉकर तोड़ते समय दो गवाहों को मौजूद
रखना और विडियो बनाना, यही तभी करना होगा जब लॉकर धारक लॉकर से बैंक का कोई संपर्क नहीं होगा या वह मौके पर मौजूद नहीं होगा।
15-May-1995